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चुनावी ‘समर’ में फंसी पार्टियां

उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सभी पार्टियां प्रखर रुप से जनता के बीच अपनी पैठ बनाने की जद्दोजहद में जुट गई हैं। आगामी विधानसभा चुनावों में अब 6 महीनों से भी कम का समय बचा हुआ है। एक तरफ सत्ता के शिखर पर बैठी भारतीय जनता पार्टी है तो दूसरी तरफ विपक्ष की भूमिका में कई दल नज़र आ रहे हैं। जिनमें सपा, बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम समते अन्य छोटे दल शामिल हैं।
2022 के चुनावों को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने समीकरण बिठाना शुरु कर दिया है। कोई छोटे दलों के साथ गठबंधन को लेकर आतुर हो रहा है तो कोई बड़े दलों के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि जनता किसको अपना अमूल्य वोट देकर जीत का तमगा हांसिल कराएगी।
बात करें, विपक्ष में बैठी तमाम पार्टियों की तो अब तक के हालातों और उफान मार रहे मुद्दों के मुताबिक सभी दलों का सीधे तौर पर एक ही एजेंडा मालूम पड़ रहा है कि कैसे भी करके बीजेपी को इस चुनाव में हराना है। जिसके लिए सभी पार्टियां अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से समीकरण बिठाने में जुट गईं हैं।
हालांकि, इस सबके बीच जो प्रश्न उठ रहा है वो यह है कि क्या पार्टियां इस बार विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगी? पूर्व चुनावों की यदि बात करें तो चाहें सपा हो या बसपा इन सभी ने तुष्टीकरण की राजनीति से ही सरकार बनाई है। सपा ने मुस्लिम और यादव वोट पर पहरा डाल रखा है तो वहीं बसपा ने दलितों के वोट पर नज़र गढ़ा रखी है।
इस सबमें सबसे अधिक मलाई चापने वाली पार्टी यदि कोई है तो वो है भाजपा। इन्होंने समूचे हिंदू वोट पर कब्ज़ा जमा रखा है। प्रत्येक चुनाव को हिंदुत्व के नाम पर लड़ने वाली बीजेपी इस बार क्या नई रणनीति लेकर जनता के बीच पेश होगी यह देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा।
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा ने अल्पसंख्यक वोटरों को भी लुभाने का मन बना लिया है। खबरों के मुताबिक, बीजेपी के संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने प्रदेश के 1,63,000 बूथों के कार्यकर्ताओं के लिए एक टार्गेट सेट किया है। राज्य के सभी बूथ अध्यक्षों से कहा गया है कि उन्हें अपने इलाके से लगभग 30 अल्पसंख्यक वोट बीजेपी के पक्ष में डलवाने हैं। जिसके परिणाम स्वरुप चुनावी नतीजों में अल्पसंख्यक वोटों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के पाले में होने से निर्णायक स्थिति उनके पक्ष में हो सकती है। माना जा रहा है कि करीब 1.5 लाख बूथ में से 50,000 बूथ ऐसे भी हैं जिनमें अल्पसंख्यक वोटरों की संख्या ज्यादा है और ये निर्णायक प्रक्रिया में बड़े स्तर पर फेरबदल कर सकते हैं। इसलिए इन वोटरों को अपने पक्ष में लाने के लिए बीजेपी के संगठन महामंत्री ने हाईलेवल मीटिंग कर यह प्लान तैयार किया है। भाजपा ने अपने इस मेगाप्लान को सफल बनाने के लिए मुफ्त राशन वितरण और सबको आवास जैसी तमाम योजनाओं का सहारा लेने की तैयारी शुरु कर दी है। भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष बासित अली ने दावा किया है कि प्रदेश सरकार की ज्यादातर योजनाओं का लाभ उठाने वाले 30 प्रतिशत लाभार्थी अल्पसंख्यक वर्ग से ही आते हैं।
गौरतलब है, इस बार का चुनाव बीजेपी समेत अन्य पार्टियों के लिए भी काफी चुनौती भरा साबित होने वाला है। कोरोना महामारी से ग्रस्त जनता इस बार बेरोजगारी, मंहगाई, शिक्षा, बिजली, कृषि कानून और अपराध जैसे तमाम मुद्दों पर वोट देने का मन पहले ही बना चुकी है। इस बीच तेजी से बढ़ रहे पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों ने आम-आदमी की “खाली जेब” पर काफी प्रहार किया है। ऐसे में पार्टियों के लिए जनता को “बहकाना” काफी मुश्किल होने वाला है।
हालांकि, समय के गर्भ में जो छिपा है वो तो होगा ही लेकिन बीजेपी को सत्ता में वापसी एक बार फिर करनी है तो जनता की नब्ज़ में अड़ी फांस का समाधान जल्द से जल्द ढूंढ़ना होगा।

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