नामुमकिन को मुमकिन बना दें

डॉ वेद व्यथित
मेरे मित्र भाई भरोसे लाल ने कहा मुमकिन, मैंने कहा नामुमकिन। यह मुमकिन और नामुमकिन बहुत देर तक चलता रहा। आखिर भाई भरोसे लाल ने कहा, भाई अब तो सब कुछ हो चुका जो मुमकिन था वह भी हो गया, पर अब जो नामुमकिन है अभी क्या वह मुमकिन हो पायेगा? मेरे इतना कहने पर पर उनका मूड चेंज हो गया। वे गंभीर हो गए क्योंकि अब खेल तो समाप्त हो चुका था। ताली बज चुकी थी, नारे लग चुके थे, झंडे उत्तर चुके थे, मालाएं बासी हो चुकीं थीं । अब तो इधर-उधर के बहाने नहीं चलने वाले और अब जितने मुर्दे गढ़े हए थे, वे भी अब सबके सब उखड़ कर बाहर आ चुके हैं।
इसलिए उन्होंने अभी भी उसी मुमकिन वाले अंदाज में फिर से मुमकिन कहा पर वे यह भी समझ गए कि अब मुमकिन कहना इतना आसान नहीं है क्योंकि जो इतने सालों से नामुमकिन था उसे कैसे मुमकिन बनाया जायेगा, यह आसान नहीं था। अब जो कहा कि हटा देंगे ऊपर से नीचे तक की बहुत सी धाराएं और बना देंगे नए क़ानून। पर अब दाए-बाएं बगलें झाँक रहे हैं। नामुमकिन को मुमकिन बस कहने भर से नहीं होगा, उसे मुमकिन करने के लिए बहुत कुछ करना होगा परन्तु होगा तभी जब आप सुबह उठते ही इसे नाश्ते के साथ परोस लें और इसे जनता द्वारा दी गई चांदी की चम्मच से चाहे चाय में चीनी घोलो, चाहे छाछ में नमक घोलो और तब तक घोलो जब तक ये धाराएं हट न जाएँ। पर अबकी बार पहले जैसी गलती मत कर देना कभी घोलते-घोलते इतना पानी मिला दो की रायता फैलता ही रहे और समेटे में न आये। यदि आपको रायता घोलना भी पड़ जाये तो उससे पहले कुल्हड़ों का इंतजाम तो कर ही लो।
इतना ही नहीं, हटाना ही काफी नहीं है। अब कुछ बनाना भी बाकी है तो बताओ अब तो वह मुमक़िन हो जायेगा या अभी भी नामुमकिन रहेगा है किन्तु -परन्तु बहुत हो गए अब कब तक मुमकिन होगा यह बता दो बस जिस भी तरह हो जब बनाना है तो कैसे भी बनाओ इसे मुमकिन कर दो, बस क्योंकि यह अब तक नामुमकिन था और अब भी नामुमकिन रहा तो फिर मुमकिन क्या होगा? इस पर भी प्रश्न लग जायेगा। तो आप का मुमकिन सब नामुमकिन हो जायेगा।
हटाना और बनाना ही नहीं नीचे तक जो अभी तक नामुमकिन है उसे भी मुमकिन करना आसन नहीं है। दफ्तर के बाबू जी जैसे पहले थे वे अभी भी ऐसे ही हैं। उन्हें बदलना नामुमकिन है क्या इसे मुमकिन कर लोगे? यदि उन का बदलना मुमकिन हो गया तो समझूंगा आठवाँ आश्चर्य भारत में हो गया है। क्योंकि गरीब और अनपढ़ आदमियों का तो इन से ही वास्ता पड़ता है। पर इनका बदलना नामुमकिन ही लगता है। यदि बदल बदल दिया तो समझो सब कुछ मुमकिन जायेगा। भाई भरोसे लाल हमारे जैसे सड़क छापों ने इसी लिए मुमकिन को चुना है कि अब वे नामुमकिन को मुमकिन बना कर दें।
डॉ वेद व्यथित
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार)
Email- dr.vedvyathit@gmail.com