नेता पुत्रों की नियुक्तियां मौलिक अधिकार के विरुद्ध

नेता पुत्रों की नियुक्तियां मौलिक अधिकार के विरुद्ध
अनिल निगम
कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने दो विधायक पुत्रों और एक कैबीनेट मंत्री के पोते को जिस तरह से सरकारी नौकरी की खैरात बांटी है, उससे भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। अगर सरकार किसी सुविधाहीन, लाचार और अत्यंत गरीब परिवार के सदस्यों को लाभ प्रदान करने के लिए जनहित में ऐसा कदम उठाती है तो उस पर शायद ही कोई सवाल उठाए, लेकिन सुविधा संपन्न और शक्तिशाली राजनेताओं के परिजन को इस तरह से सरकारी नौकरी प्रदान करने की घटना ने ‘’अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर खुद को देय’’ वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है।
पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार पार्टी के दो विधायकों के बेटों और एक कैबीनेट मंत्री के पोते को नौकरी देकर अब अपनी ही पार्टी के नेताओं के सवालों से घिर गई है। दरअसल राज्य सरकार की तरफ से विधायक राकेश पांडे के बेटे को सीधे नायब तहसीलदार और विधायक फतेह जंग सिंह बाजवा के बेटे को पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर पद पर नौकरी देने से संबंधित एक प्रस्ताव कैबिनेट में पास किया गया है। इन दोनों विधायक पुत्रों को आतंकवाद पीड़ित परिवार कोटे से नौकरी दी गई है। इसके अलावा प्रदेश के कैबिनेट मंत्री गुरप्रीत कांगड़ के दामाद को एक्साइज विभाग में इंस्पेक्टर नियुक्त किया गया है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस निर्णय के चलते पंजाब की राजनीति में उबाल आ गया है और यहां तक कि कांग्रेस नेताओं ने भी मुख्यमंत्री के इस निर्णय की तीखी आलोचना की है। पंजाब की कैप्टन सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले पर अब कांग्रेस पार्टी के ही नेता सवाल उठा रहे हैं। पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील झाखड़ ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से अपील की है कि पार्टी विधायकों के पुत्रों को नौकरी देने के फैसले पर उनको पुनर्विचार करना चाहिए। यह निर्णय जन भावना के विरुद्ध है, इसलिए मुख्यमंत्री लोगों की भावना के मद्देनजर इस नियुक्ति को अविलंब रद्द कर दें। पार्टी के एक विधायक कुलजीत नागरा ने भी पंजाब सरकार से कहा है कि वह विधायक पुत्रों को नौकरी देने के अपने फैसले को वो वापस ले। कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू की विधायक पत्नी नवजोत कौर सिद्धू ने भी इस फैसले को गलत ठहराया है। इसके अलावा भाजपाई और अकाली नेताओं ने उन पर जमकर कीचड़ उछाला है कि मुख्यमंत्री अपनी सत्ता की कुर्सी को बचाने के लिए असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं को खुश करने का आरोप लगा रहे हैं।
हालांकि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का तर्क है कि उक्त तीनों नेताओं के परिवारों ने बहुत बड़ा बलिदान किया है। पंजाब में आतंकवाद के दौरान उन्होंने अपने परिवारों के अनेक लोगों की जानें गंवाई हैं। चूंकि उनके परिवार के लोग राजनीति में थे, इसलिए उनके परिवार के लोगों को नौकरी पाने का हक है। लिहाजा उक्त तीनों लोगों की नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर की गई है।
सवाल यह उठता है कि क्या सुविधा संपन्न लोगों की इस तरीके से बेहद जिम्मेदार पदों पर नियुक्ति की जा सकती है? क्या यह कानूनी रूप से सही फैसला है? अगर ऐसी नियुक्तियां की जाएंगी तो समाज और देश में किस तरह की अव्यवस्था फैल सकती है। भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों को समानता का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है। अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत इन अधिकारों का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि धर्म, वंश, जाति, लिंग और जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। हालांकि अनुच्छेद15 (4) में सामाजिक और शैक्षिक दषि्ट से पिछडे वर्गों के लिए उपबन्ध अवश्य हैं। इसके अलावा अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्रदान करने की बात कही गई है। कहने का आशय है कि संविधान के अनुसार पंजाब सरकार के इस निर्णय को सही नहीं ठहराया जा सकता।
दूसरी ओर अगर इस पूरे मामले की पड़ताल की जाए तो हम पाते हैं कि जिनकी नियुक्ति बिना किसी परीक्षा और योग्यता के परीक्षण के भर्ती की गई है, वे आर्थिक रूप से संपन्न परिवार के लोग हैं। ऐसे में सरकार के इस फैसले के खिलाफ राजनैतिक दलों का गुस्सा जायज है। वास्तविकता तो यह है कि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार को सिर्फ नेताओं को ही नहीं बल्कि प्रदेश के ऐसे सभी लोगों को जवाब देना होगा जो बेरोजगारी और गरीबी का दंभ झेल रहे हैं। अगर पंजाब सरकार ने अपने इस फैसले पर पुनर्विचार कर वापस नहीं लेती है तो आने वाले समय में जनता उसको क्षमा नहीं करेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आईआईएमटी न्यूंज के संपादक हैं।)