Site icon IIMT NEWS, Hindi news, हिंदी न्यूज़ , Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi, ताजा ख़बरें

सिविल कोड पर इतना हंगामा क्यों ?

अनिल निगम
भारत में एक समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) की मांग लंबे अरसे से चली आ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता की बाबत कानून न बनाए जाने पर असंतोष जाहिर किया है। अदालत की इस टिप्पणी से इस मुद्दे पर पुन: बहस छिड़ गई है। संपूर्ण देश में गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है जहां पर सिविल कोड लागू है। जम्मू कश्मीार राज्य का विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद संपूर्ण देश में समान कानून की मांग और तेज हो गई है वहीं अल्परसंख्य्क वर्ग ऐसा किए जाने के सख्त खिलाफ है। अहम सवाल यह है कि एक ही देश में एक ही व्य्वस्था के लिए अलग कानून कैसे हो सकते हैं? क्या धर्म के आधार पर कानून का प्रावधान देश के संविधान की मूल भावना और मानवता के खिलाफ नहीं है?

निस्संदेह, सभी धर्मों का आदर समान रूप से किया जाना चाहिए। भारत के संविधान निर्माताओं ने भी भारत को धर्मनिरपेक्ष देश भी घोषित किया है। लेकिन उन्होंने इसके साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का प्रावधान किए जाने की बात कही है। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के इस अनुच्छेद में बताया गया है कि भारत के संपूर्ण राज्यो के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करेगा।
समान नागरिक संहिता में देश के सभी धर्म या जातियों के नागरिकों के लिए एक समान कानून होता है। इसमें विवाह, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे के संबंध में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होता है। अभी देश में जो स्थिति है उसमें सभी धर्मों के लिए अलग-अलग नियम हैं। संपत्ति, विवाह और तलाक के नियम हिंदुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के लिए अलग-अलग हैं। वर्तमान में कुछ धर्म के लोग विवाह, संपत्ति और तलाक आदि में अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। मुसलमान, ईसाई और पारसी समुदाय के अपने पर्सनल लॉ हैं जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध समुदाय के लोग आते हैं। हालांकि सिख समुदाय के लोग भी समय-समय पर इस पर सवाल उठाते रहे हैं। दूसरी ओर समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का तर्क है कि उनको अपने धर्म के पर्सनल लॉ के अनुसार ही संचालित करने की आजादी होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो उनको भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 के तहत प्राप्त कानून के समक्ष समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
गौरतलब है कि गोवा भारत का इकलौता राज्य है, जहां पर समान नागरिक संहिता लागू है। भारतीय संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। साथ ही संसद ने कानून बनाकर गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार दिया था। यह सिविल कोड गोवा में आज भी लागू है। इसको गोवा सिविल कोड के नाम से भी जाना जाता है। गोवा वर्ष 1961 में भारत में शामिल हुआ था। दिलचस्प पहलू यह है कि भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर अभी बहस चल रही है जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश समान नागरिक संहिता को अमलीजामा पहना चुके हैं।

सवाल यह है कि भारत में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के लिए समान कानून क्यों होना चाहिए? वास्तविकता यह है कि एक ही देश में विभिन्न् धर्मों के अनुयायियों के लिए अलग कानून होने से न्यायपालिका पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। वर्तमान में कई धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
अगर संपूर्ण देश एक कानून लागू हो जाए तो इससे काफी सहजता हो जाएगी। अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों का निपटारा शीघ्र हो जाएगा। विवाह, संपत्ति , तलाक और गोद जैसे मामलों के लिए सभी धर्मों और जातियों के नागरिकों के लिए समान कानून ही होगा। इससे न केवल हर धर्म की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा बल्कि देश में एकता और अखंडता की भावना भी सशक्त होगी।
Email-
anilkrnigam@gmail.com
https://www.facebook.com/anil.nigam.98
https://twitter.com/AnilNigam12

(लेखक आईआईएमटी न्यूiज के संपादक हैं)

Exit mobile version