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कानपुर के कमिश्नर असीम अरुण ने वर्दी छोड़ थामा भाजपा का हाथ, कन्नौज से लड़ सकते है चुनाव

असीम अरुण

असीम अरुण

 चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, तो उसके फौरन बाद एक ऐसी खबर आई जिसने सबको चौंका दिया.  ख़बर ये थी कि कानपुर के  पुलिस कमिश्नर असीम अरुण ने विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस ले लिया है. ये फैसला लेते ही उन्होंने अपने सोशल मीडिया की पोस्ट में ये ऐलान भी कर दिया कि वे कन्नौज सदर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. उनके किसी पार्टी से जुड़ने या चुनाव लड़ने पर किसी को ऐतराज नहीं होगा और होना भी नही चाहिए क्योंकि ये उनका निजी फैसला है  लेकिन सवाल उठता है कि चुनाव तारीखों का ऐलान होते ही उन्होंने ये फैसला लेकर यूपी की जनता को आखिर क्या संदेश देना चाहा है? विरोधी दलों को ये बहुत सारे शक-शुबहे उठाने की गुंजाइश भी देता है.

केंद्रीय सेवाओं के तमाम सर्विस रुल्स को अगर दरकिनार भी कर दें, तो क्या असीम अरुण की अन्तरात्मा ने उन्हें झिंझोडा नहीं होगा कि जिस खाकी वर्दी को पाने, पहनने और समाज से इज्जत हासिल करने के लिए इतनी मशक्कत की थी, उसे एक झटके में यों उतारकर फेंक देने के बाद कौन सी महान देश-सेवा के लिए निकल पड़े हो?

क्या आप सोच सकते हैं कि देश के तमाम राज्यों में आईपीएस बनने की तैयारी कर रहे लाखों युवाओं के बीच इसका जो संदेश गया है, उसे समझने की जहमत हमारे नेता उठाएंगे.  बिल्कुल भी नहीं. इस एक असाधारण घटना के बाद उस युवा पीढ़ी का विश्वास तो अब और भी गहरा हो जाएगा कि हमारे देश में खाकी वर्दी से ज्यादा ताकत खादी के उस  कुर्ते-पाजामे-धोती में ही है, भले ही उसका रंग सफेद न भी हो. ये सीना चौड़ा करने वाली घटना नही है, बल्कि ये हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कुछ साल की नौकरी करने के बाद नये अफसर भी अगर अपने सीनियर के नक्शे-कदम पर चलने लगे, तब देश की  कार्यपालिका का क्या होगा. हालांकि इससे पहले भी कई आईएएस व आईपीएस अफ़सरों ने राजनीति को अपना नया ठिकाना बनाया है और उनमें से कुछ केंद्रीय मंत्रीपद पर भी हैं लेकिन अधिकांश ने रिटायर होने के बाद ही सियासी दामन थामा है. लेकिन राजनीतिक इतिहास में शायद ये पहली व अनूठी घटना है, जब चुनाव तारीखों का ऐलान होते ही एक पुलिस कमिश्नर वीआरएस लेकर किसी पार्टी में शामिल होने का ऐलान कर दे.

वैसे प्रकृति का नियम है कि हर क्रिया के बाद उसकी प्रतिक्रिया भी अवश्य होती है. कुछ दिन इंतज़ार कीजिये क्योंकि इस घटना के बाद अब ऐसा हो नहीं सकता कि केंद्रीय सेवाओं के सर्विस रूल को और ज्यादा सख्त बनाने की गुहार लेकर कोई शख्स या संगठन  देश की शीर्ष अदालत की चौखट तक न पहुंचे. उम्मीद करनी चाहिए कि तब सुप्रीम कोर्ट ही कोई ऐसा निर्देश देगा कि भविष्य में कार्यपालिका में आकर अपनी सेवाएं देने का हमारी युवा पीढ़ी का भरोसा हमेशा के लिए कायम रहे.

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