Site icon IIMT NEWS, Hindi news, हिंदी न्यूज़ , Hindi Samachar, हिंदी समाचार, Latest News in Hindi, Breaking News in Hindi, ताजा ख़बरें

प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘काव्य पुरुष: डॉ. देवेंद्र दीपक’ का विमोचन

राजतिलक शर्मा

(ग्रेटर नोएडा) मनुष्य के सामाजिक जीवन में पुस्तक का महत्व रेखांकित करते हुए प्रख्यात साहित्याकार डॉ. देवेन्द्र दीपक ने कहा कि नायक है पुस्तक और गूगल सहायक. गूगल जो भी साहित्यक सामग्री आपके समक्ष प्रस्तुत करता है वह किसी न किसी साहित्यकार की साधना का फल होता है। यह बातें रविवार को प्रेरणा शोध संस्थान में प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा सम्पादित पुस्तक “काव्य पुरुष: डॉ. देवेन्द्र दीपक – दृष्टि  और मूल्यांकन” के विमोचन समारोह में व्यक्त की। कहीं.

साहित्याकार डॉ. देवेन्द्र दीपक  ने कहा कि रेलवे स्टेशन से पुस्तक स्टाल के गायब होना एक चिंता का विषय है. लेकिन, आंकड़े बताते है कि पुस्तकें पढी जा रही हैं. हालाँकि उनका स्वरुप बदल गया है जैसे की अब इ – बुक का प्रचलन बढ़ गया है. पुस्तक नायक है, गूगल सहायक है. उन्होंने जोर देकर कहा कि पुस्तक उद्घाटन के मंचों पर लेखक और लेखिका के जीवन साथी का भी सम्मान होना चाहिए इससे बदलते सामाजिक परिदृश्य में पारिवारिक समरसता बढेगी. डॉ. देवेन्द्र दीपक राष्ट्रीय चेतना के शिक्षक, पत्रकार और साहित्यकार रहे हैं. वह मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक के अतिरिक्त कई महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दे चुके हैं. डॉ. देवेन्द्र दीपक वर्त्तमान में ९४ वर्ष के हैं. उन्होंने आपातकाल, दलित चिंतन, भारतीय संस्कृत के मूल्यों पर अपनी दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है.

पुस्तक का लोकार्पण करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के क्षेत्र प्रचार प्रमुख श्री पद्म सिंह जी ने कहा, “देवेन्द्र जी ने केवल शब्दों से ही नहीं बल्कि अपने आचरण से देश और समाज को जोड़ने वाला विमर्श खड़ा किया. उनकी कविताओं में देश, धर्म, और संस्कृत का विचार होता है. उन्होंने अपने नाम के अनुरूप दीपक की तरह जलकर समाज का मार्गदर्शन किया,”.

इस अवसर दिल्ल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अवनिजेश अवस्थी ने कहा “देवेन्द्र जी ने आपातकाल को सहा और उसे शब्दों में पिरोया. उन्होंने नौकरियां छोड़ी लेकिन झुके नहीं. वह वक्ता रहे किसी के प्रवक्ता नहीं”.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा “सत्तर के दशक में इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा थोपा गया आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय है, यह लोकतंत्र पर एक धब्बा रहा है”. उन्होंने जोर देकर कहा कि डॉ. देवेन्द्र दीपक सच्चे अर्थों मे एक भारतीय साहित्यकार है क्योंकि वह अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहे है. “जिसकी वैचारिकी के सूचकांक विदेशी हों वो भारतीय साहित्यकार कैसे हो सकता है”.

पुस्तक के लेखक प्रो. अरुण कुमार भगत पत्रकारिता और साहित्य के ख्यातनाम हस्ताक्षर हैं. वो वर्तमान में बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं. अपने संबोधन में प्रो. भगत ने कहा कि डॉ. देवेन्द्र दीपक की रचानाओं में सूक्तियों की भरमार है जो कि जीवन के मार्गदर्शक का कार्य करती हैं. २०५ पृष्ठों की इस पुस्तक में ४८ लेख हैं और इसका प्रकाशन यश प्रकाशन ने किया है.

कार्यक्रम का सञ्चालन प्रो. अनिल निगम ने किया. इस अवसर पर कई विश्वविद्यलयों के शिक्षक, क्षात्र, मीडिया कर्मी, साहित्यकार, लेखक आदि उपस्थित रहे.

Exit mobile version